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त्वं नो॑ऽअग्ने॒ तव॑ देव पा॒युभि॑र्म॒घोनो॑ रक्ष त॒न्व᳖श्च वन्द्य। त्रा॒ता तो॒कस्य॒ तन॑ये॒ गवा॑म॒स्यनि॑मेष॒ꣳ रक्ष॑माण॒स्तव॑ व्र॒ते ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

त्वम्। नः॒। अ॒ग्ने॒। तव॑। दे॒व॒। पा॒युभि॒रिति॑ पा॒युऽभिः॑। म॒घोनः॑। र॒क्ष॒। त॒न्वः᳖। च॒। व॒न्द्य॒ ॥ त्रा॒ता। तो॒कस्य॑। तन॑ये॒ गवा॑म्। अ॒सि॒। अनि॑मेष॒मित्यनि॑मेषम्। रक्ष॑माणः॒। तव॑। व्र॒ते ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:34» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा और ईश्वर की कैसी सेवा करनी चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव) उत्तम गुणकर्मस्वभावयुक्त (अग्ने) राजन् वा ईश्वर (तव) आप के (व्रते) उत्तम नियम में वर्त्तमान (मघोनः) बहुत धनयुक्त हम लोगों की (तव) आपके (पायुभिः) रक्षादि के हेतु कर्म्मों से (त्वम्) आप (रक्ष) रक्षा कीजिये (च) और (नः) हमारे (तन्वः) शरीरों की रक्षा कीजिये। हे (वन्द्य) स्तुति के योग्य भगवन् ! जिस कारण आप (अनिमेषम्) निरन्तर (रक्षमाणः) रक्षा करते हुए (तोकस्य) सन्तान पुत्र (तनये) पौत्र और (गवाम्) गौ आदि के (त्राता) रक्षक (असि) हैं, इसलिये हम लोगों के सर्वदा सत्कार और उपासना के योग्य हैं ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। जो मनुष्य ईश्वर के गुण, कर्म, स्वभावों और आज्ञा की अनुकूलता से वर्तमान हैं, जिनकी ईश्वर और विद्वान् लोग निरन्तर रक्षा करनेवाले हैं, वे लक्ष्मी, दीर्घावस्था और सन्तानों से रहित कभी नहीं होते ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजेश्वरौ कथं सेवनीयावित्याह ॥

अन्वय:

(त्वम्) (नः) अस्माकम् (अग्ने) राजन्नीश्वर वा (तव) (देव) दिव्यगुणकर्मस्वभाव (पायुभिः) रक्षादिभिः (मघोनः) बहुधनयुक्तान् (रक्ष) (तन्वः) शरीराणि (च) (वन्द्य) वन्दितुं स्तोतुं योग्य (त्राता) रक्षिता (तोकस्य) अपत्यस्य (तनये) पौत्रस्य। अत्र विभक्तिव्यत्ययः। (गवाम्) धेन्वादीनाम् (असि) (अनिमेषम्) निरन्तरम् (रक्षमाणः) (तव) (व्रते) सुनियमे ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने ! देव तव व्रते वर्त्तमानान् मघोनोऽस्मान् तव पायुभिस्त्वं रक्ष, नस्तन्वश्च रक्ष। हे वन्द्य ! यतस्त्वमनिमेषं रक्षमाणस्तोकस्य तनये गवाञ्च त्रातासि, तस्मादस्माभिर्नित्यं सत्कर्त्तव्य उपासनीयश्चासि ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र श्लेषालङ्कारः। य ईश्वरगुणकर्मस्वभावाज्ञानुकूलत्वे वर्त्तन्ते, येषामीश्वरो विद्वांसश्च सततं रक्षकाः सन्ति, ते श्रिया दीर्घायुषा प्रजाभिश्च रहिता कदाचिन्न भवन्ति ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात श्लेषालंकार आहे. जी माणसे ईश्वराच्या गुण, कर्म स्वभावानुसार त्याच्या आज्ञेत राहतात व ईश्वर आणि विद्वान लोक ज्यांचे सतत रक्षण करतात ते दीर्घायू होतात. त्यांना लक्ष्मी व संतानांची प्राप्ती होते.